Thursday, May 10, 2012

आत्म-शक्ति

 जीवन में बहुत बार हमें लगता है अब बस-और  नहीं . कभी किसी पहाड़ी  पर चढ़ाई की है? जैसे जैसे ऊपर पहुँचते जाते हैं, पैरों को लगने लगता है कि उनपे पत्थर बाँध  दिए गए हैं , साँसों को लगने लगता है कि उनको रोकने की साज़िश  हो  रही है, दिल  को लगता है कि धड़कन और तेज़  हुई तो पूरी तरह रुक जाने का ख़तरा पैदा हो जाएगा..इन  सब  अंगों के सिग्नलों  के बावजूद , कुछ  तो है जो आगे बढ़ने का हौसला देता रहता है - आपने क्या सोचा ? वो दिमाग है? ना ना  - दिमाग  तो शरीर के सारे संकेतों को सुन  कर आपको रुक  जाने की सलाह देने लगता है। उसका काम  तो शरीर की रक्षा करना है ना? तो फिर क्या है जो कहता है "बस  थोड़ा सा और, ज़रा सा और बढ़ो, अब बस पहुँचने ही वाले हैं"..बस  उसी आवाज़  को सुन कर हम  आगे  बढ़ते जाते हैं ना ? और जब हम उस पहाड़ी के ऊपर पहुँचते हैं तो जो अनूभूति होती है, वो कैसे शब्दों में व्यक्त करूँ? एक उपलब्धि का अनुभव होता है - उस पल में हम सारी परेशानियों को भूल जाते हैं. और साथ ही उस आवाज़ को भी जो रास्ते भर साथ रही. 
         वो जीवन शक्ति कहाँ गयी? एक बार सोच के देखिए - वो कहीं बाहर नहीं है - आपके अंदर ही है. बस जीवन की चढ़ाई में हम उसकी आवाज़ सुनते नहीं हैं - बाहर के शोर पे जो सारा ध्यान रहता है. जब आप किसी पहाड़ी पर चढ़ रहे होते हैं, तो रास्ते में कितनी सारी चीज़ें मिलती हैं - नदी अपने रास्ते बह रही होती है, पेड़ पौधे अपनी जगह पे दोल रहे होते हैं, पंछी अपने खाने -दाने में व्यस्त होते हैं. आप ये सब देखते हैं और इन सब की सुंदरता को अपने मन में रख कर आगे बढ़ते हैं. आप नदी से ये तो अपेक्षा नहीं करते कि वो आपके साथ चलेगी, ना ही सोचते हैं की पेड़ अपने स्थान से हट जाएँगे. तो फिर हम ये अपेक्षा इंसानों से भी क्यूँ करते हैं? और जब वो अपेक्षा पूरी नहीं होती, तो हमें अपना जीवन व्यर्थ लगने लगता है. क्यूँ?
             ये जीवन एक यात्रा ही है - और इसमें बहुत लोग आते हैं और जाते हैं - कुछ जो आपके साथ लंबे समय तक चलते हैं और कुछ बस थोड़े समय के साथी हैं. लेकिन अंततः सब अपनी अपनी यात्रा ही कर रहे होते हैं. जो साथ हैं, उनके साथ के लिए और जो आगे बढ़ गये या पीछे छूट गये, उनके साथ बिताए अच्छे पलों के लिए धन्यवाद . ज़रा सोच के देखिए - क्या जीवन कभी रुकता है? वो तो बस एक नश्वर शरीर से दूसरे में जाता रहता है. और इसी तरह लाखों करोड़ों वर्षों से चल रहा है. हम और आप तो बहुत  छोटे हैं उसके आगे. तो फिर मानना पड़ेगा ना कि वो ही सर्वशक्तिमान है? और वही है ज़ो आपके साथ हमेशा रहती है - वो दिखाई नहीं पड़ती, लेकिन कठिन पलों में भी आगे बढ़ने की प्रेरणा उसी से मिलती है - ठीक उस पहाड़ी पर चढ़ाई करने की प्रेरणा की तरह. तो फिर ध्यान से सुनिए  उसको - वो कह रही होगी कि "बढ़ो आगे - कोई हार मानने की ज़रूरत नहीं है, और आगे और भी सुंदर नज़ारे मिलेंगे, बस बढ़ते चलो". और बस इसी तरह आपकी यात्रा पूरी होगी.