आज धूमिल सा कुछ आसमाँ है, और वैसी ही कुछ यादें हैं,
किसी की सूरत है इन यादों में, और किसी की कही बातें हैं।
हम पीछे रह गए शायद वहीँ, जहाँ बैठे थे सिर्फ कुछ देर को,
पर काफिला बढ़ता गया, बेफ़िक्र कि हम हैं साथ या कोई और हो।
ख़बर है हमें लम्हे गुजरने की, पर फिर भी क्यों लगता है ऐसे,
कि जहाँ हम बैठे हैं, वहां सिर्फ वक़्त बदलता है और कुछ भी नहीं जैसे ?
आज धूमिल सा कुछ आसमाँ है, और वैसी की कुछ यादें हैं,
गुज़र गए वक़्त से शिकवा नहीं, दी हैं उसने बहुत सी अच्छी बातें हैं ।