Thursday, October 18, 2012

सवाल


हज़ारों दिनों की तन्हाइयों में, चंद चोरी किये लम्हे,
क्या काफ़ी हैं एक उम्र  भर के लिए?

जिसे मसरूफियत की आदत हो उसे क्या कहिये,
क्या हासिल होगा मिल के, उससे पल भर के लिए ?

जिन्हें है ज़रुरत एक छाँव की ज़िंदगी की धूप में,
थक के गिर जायेंगे या रखेंगे ताक़त उसे ढूँढने कल के लिए?

बस यूँ ही उम्मीद करते शायद उम्र चली जायेगी,
वो सवाल बस रह जाएगा जब हम होंगे तैयार रुखसत के लिए।
  

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