Tuesday, July 17, 2012

ग़मगीन

उनकी आँखों में एक सागर बसता है,
पर दिखाई नहीं देता हर किसी को,  
जो ना हो भरोसा इस बात पे तो
सिर्फ दो कड़वे शब्द बोल के देख लो..

नहीं ज़रुरत किसी तीर या तलवार की,
नहीं ज़रुरत किसी ग़मगीन मंज़र की,
सिर्फ एक तेज़ धार जुबां काफी है,
आजमाने को जो बात मैंने कही है..

बात जब सीधे दिल पे लगी होगी,
तो बेसाख्ता उनकी आँखें भर आयेंगी,  
और बाँध कब सागर को रोक सका है,
जो अश्कों को पलकें रोक पाएंगी?

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और तब उन्हें लगेगा बस रोते ही जाएँ,
शायद उसके बाद कुछ सुकून आयेगा, 
बस किसी तरह वो दिल में बसी सारी बातें, 
शायद उन अश्कों के साथ ही रवां हों जाएँ.

मगर वो बस एक ख़याल ही है,
कि सुकून मिलेगा चंद आंसूओं के बह जाने से,
मगर और कुछ तो बस में है नहीं,
तो थोड़ी देर और रो लिया जाए.