Wednesday, October 22, 2008

आधुनिक भारत

आजकल गांवों तक आधुनिक तकनीक किस सीमा तक पहुंच गयी है, इसका आभास मुझे तब हुआ जब मुझे ये किस्सा बताया गया - इलाहाबाद के एक विवाह के अवसर पर ,जैसा कि बडी-बूढी औरतें किया करतीं हैं, एक दादी मां की दहेज देखकर टिप्पडी थी - "का लल्ला, समोसा गर्मावे वाली मसीन नाहिं मिलि का?"।
अब आप सोचेंगे कि ये कौंन सा नया यंत्र है - तो ये मैं बात कर रही हूं "माइक्रोवेव ओवेन" की।
यदि हम पिछले समय पर दृष्टि डालें तो पता चलेगा कि ये दहेज के बारे में बातें करना भारतीय समाज में बहुत पुरानी परम्परा है। नव वधु का परिवार में कितना मान रहेगा, ये उसके द्वारा लाये गये दहेज पर निर्भर करता था - और आज भी करता है - मुख्यतः तय किये गये विवाहों में ("अरेंज्ड मैरिज"।
परंतु मेरे प्रथम हिंदी ब्लोग का ये विषय नहिं है - मैं विषय से तनिक हट गयी थी ।
तो हम बात कर रहे थे आधुनिक तकनीक का ग्रामों में क्या असर है।
पिछ्ली बार जब मैं दीवाली के लिए घर गयी तो मेरी माँ ने बताया कि मेरी नानी ने मुझसे मिलने कि इच्छा प्रकट की है। अब मेरी नानी जी का घर है इलाहबाद के एक गाँव में जहाँ गए हुए मुझे करीब दस साल हो चुके थे तो मुझे ये सोच कर स्वयं पर रोष हुआ कि मैंने इतने दिनों से ये बात अपने आप क्यों नहीं सोची। सो मैंने चटपट हाँ कर दी। दो दिन घर पर रहने के बाद हम निकले अपनी गाँव यात्रा पर। सबसे पहले हम रेल द्वारा इलाहाबाद के लिए निकले। वहाँ पहुँचने पर एक गाड़ी ले कर हम आगे बढे। अब माँ का विचार था कि चूँकि मुझे अपनी दादी के घर गए हुए भी पांच वर्ष हो चुके थे सो हमें वहाँ भी जाना चाहिऐ। गौर रहे कि मेरी दादी का घर भी इलाहबाद के ही एक दुसरे गाँव में है। तो इस मोबाइल क्रांति के युग में खबर पहुँचाते क्या देर लगती है सो तुरंत अपने ताऊ जी के घर पर सम्पर्क स्थापित कर के बताया कि अगले एक घंटे में हम वहाँ पहुंचेंगे। रास्ते में मिठाइयाँ आदि लेने के लिए रुके तो अब इलाहाबाद से बिना कचौरी खाए आगे बढ़ने को अपराध समझ कर मैंने ऐसा करने से मना कर दिया। चटोरी ज़बान जायके के लिए कुछ भी करवा लेती है। फिर समोसे कचौरी का उत्कोच स्वीकार करने के बाद ज़बान ने आगे बढ़ने कि आज्ञा दी। विषय से थोडा हट्ने के लिये क्षमा करें। थोडी देर में हम मेरे पैतृक गाँव पहुंचे। देखा तो वहाँ ज्यादा कुछ नहीं बदला ।
बस अब खपरैल वाले घरों में पुराने तीन डंडों वाले "एंटिना" कि जगह नए ज़माने के डिश ने ले ली है । बिजली रहे न रहे लेकिन सबके घरों में टीवी और हर किसी के पास मोबाइल ज़रूर है । बढिया है ।
बिल्कुल वैसा ही दृश्य मेरी नानी जी के गांव में भी दिखा। वहां पर घरों में दहेज में मिला हुआ टी वी, फ़्रिज, मिक्सर - सब कुछ दिखेगा। मज़ा ये है कि सब कुछ होने पर भी बहू सिल-बट्टे पे ही मसाला पीस रही दिखेगी - आपने ठीक समझा - बिजली न होने के कारण!
वाह रे आधुनिक भारत - समय के साथ सुख सुविधाओं के सारे साधन खरीद सकने का सामर्थय सबके पास हो गया है - परंतु उनका प्रयोग कर सकने में शायद अभी थोडा और समय लगेगा। "ईंडिया शाइनिंग"।

2 comments:

K said...

woww.... Aisa laga ki Hindi ki pustak se koi lesson pad rahi hoon... itni shudh hindi pade hue to jamana ho gaya....

Achha hai aur likho....

Khush Raho
Kanchan

Niharika Joshi Bhatt said...

theek kaha..ek drishya mujhe bhi yaad aa raha hai..halanki yeh aadhunik bharat to nahin varan 'glocal bharat' jarror darshata hai.. delhi ke malviya nagar mein jam mein post graduation ke time rehti thi tab ek theli wala tha jo bechta tha...punjab diii mashhoor


'chowmein'

:)