Thursday, October 23, 2008

मस्ती की पाठ्शाला

आज मैनें एक मित्र को "मेसेंजर" पर "हेलो" लिखा तो उधर से जवाब आया "हांजी"। इस पर मुझे अपने पिता द्वारा बताया गया एक किस्सा याद आ गया।
वो बात उनके पाठशाला के दिनों की है। एक बार उनकी कक्षा में मास्टर जी पढाते जा रहे थे। अब जैसा कि हम सब जानते ही हैं कि कक्षा में आंखें खुली रख कर सोने का अनुभव कैसा होता है, तो यह किस्सा उसी अनुभव की एक कहानी है। तो उस कक्षा में एक लड्का अर्धनिंद्रा में था। अचानक मास्टर जी को लगा लोगों को जगाना चाहिये। तो उनहोंने उसी लडके को बोला -"सुनो"।
वो लड्का हडबडा के उठा - "हां जी?"। तत्पश्चात मास्टर जी बोले - "मैनें क्या पढाया - बताओ"। तो उस लडके के मुंह से निकला - "का जी"(क्या जी)। मास्टर जी भी मस्त थे, बोले "हां जी, का जी, सब बडे पाजी"। पूरी कक्षा ज़ोर से हंस पडी। और ये किस्सा इतना मशहूर हो गया कि आज से करीब ४० साल पह्ले हुए एक छोटे से गांव के एक छोटी सी पाठ्शाला के उस किस्से को आज पढ कर आप भी हंस रहे होंगे ः-)।
इसी प्रकार हम सब की छात्र जीवन कि कुछ ऐसी छोटी-बडी घट्नायें होती हैं, जो कि हमेशा के लिये मन में रह जाती हैं। उंहें याद कर के मुख पर वर्षों बाद भी एक मुस्कान आ जाती है। कुछ ऐसी कि जिन पर ये कहावत लागू होती है - "गूंगे का गुड"(जिसका तात्पर्य ऐसी बात से होता है जिसे सिर्फ़ सोचने वाला ही सोच-सोच के आनंद ले सकता है)- ऐसी बातें जिसे याद कर के वही लोग आनंद ले सकते हैं जो खुद उस समय और स्थान पर थे जब वो घटना हुई होगी। और कुछ ऐसी बातें जिन को आप दूसरों के साथ बांट सकते हैं और उन को भी उतना ही आनंद आयेगा जितना कि आपको घटना के घटित होने पर आया होगा।
एक तीसरी श्रेणी भी है - वो जिनके घटने पर तो आप को लगा होगा कि ये क्या हो गया और आपको लज्जित होना पडा अथवा आप को लगा ये तो बहुत खराब हुआ - परंतु जब आप पीछे पलट कर उस समय को देखें, तो वो ऐसी मूर्खतापूर्ण घटना लगेगी कि आप हंस पडेंगे।
अब मुझे अपने छात्र जीवन की ऐसी ही एक-दो घट्नायें याद आ रही हैं।
प्रथम श्रेणी कि बात छोड देते हैं - क्युंकि उसका आनंद लेने के लिये मुझे बहुत सारी भूमिका बांधनी पडेगी।
तो दूसरी श्रेणी की बात बताती हूं।
जब मैं नवीं कक्षा में थी, तब हमें "जीव विज्ञान" के पाट्यक्रम के अनुसार, मेंढक काटना होता था। अब कक्षा में हर कोई इतना बहादुर तो नहीं था कि मेंढक को छू भी सके - काटना तो बहुत दूर कि बात थी। तो हमारी टीचर हमारी हिचक मिटाने के लिये बोल रही थीं कि हमें उस बेहोश मेंढक को अपने हाथ में लेना चाहिये। तो इसके लिये उनके शब्द थे "hold this rana in your hand" (मेंढक का वैज्ञानिक नाम "राना टिग्रिना होता है)। अब हमारे एक मास्टर जी थे जिनका नाम "राना" था। अचानक वो उधर से निकले तो उंहोंने प्रयोगशाला में झांक लिया। उस समय तो हमने किसी तरह अपनी हंसी रोकी - पर उनके जाते ही जो ठहाका लगा कि जीव विज्ञान वाली टीचर भी अपनी हंसी नहिं रोक पायीं।
तीसरी श्रेणी का भी एक किस्सा लिखने का मन तो था लेकिन इस अंग्रेज़ी "कीबोर्ड" से हिंदी लिखना थोडा कष्ट्कारी है। तो वो अगली बार के लिये।
तब तक - हंसते और हंसाते रहिये।

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