किसे बताऊँ कि ह्रदय आकुल क्यूँ है ,
क्या है वो व्यथाएं जो मन को अशांत करती हैं,
किसे कहूं कि बैठो और सुनो,
जो कथाएं मुझको आक्रान्त करती हैं ?
कुछ नहीं है बताने को पर कुछ तो है कहीं,
जो किसी फांस के चुभने जैसा है,
मन के किसी कोने में ज़रूर है कोई बात,
जो शायद किसी आस के टूटने जैसा है.
कैसे ढूँढूं उस बात को कि डर है और उलझ जाने का,
कि जैसे एक मायाजाल में फंसते जाना है,
मन के सवालों का अगर जवाब देने की ठानी,
तो जैसे खुद ही बवंडर के रस्ते में जाना है.
मगर कुछ उत्तर तो ढूँढने ही पड़ेंगे,
इससे पहले कि प्रश्न ही अर्थहीन हो जाएँ,
कोई और नहीं बता सकेगा क्या है मन के अन्दर,
तो ढूँढने की कोशिश करते हैं स्वयं में लीन हो कर.
No comments:
Post a Comment